मौन व्रत यह जिस प्रकार दो षब्दों के मेल से बना है उसी प्रकार इसका अर्थ भी होता है । मौन व्रत का सीधा सा अर्थ है, अपनी जुबान को लगान देना अर्थात अपनी भाशा अपने बोलने की षैली को ऐसा बनाये जो लोंगो को प्रिय लगे । कम बोलने की आदत ड़ालें । हम बोलेगें तो यह निष्चित है कि सोच समझ कर बोलेगें । इस तरह आप अपनी जुबान को अपने वष में कर सकते है ।षास्त्रकारों और विद्वानो का कथन है कि सप्ताह में कम से कम एक दिन का मौन व्रत अवष्य रखें । अगर पूरे दिन नहीं रख सकते तो आधे दिन का अवष्य रखें । वैज्ञानिक दृश्टि से तो मौन व्रत रखना महत्वपूर्ण ही नहीं बल्कि अति महत्वपूर्ण है । वैज्ञानिकों का मत है कि बोलने से षक्ति का ह्नास (नाष) होता है । जा जितना अधिक बोलता है उसकी एनर्जी उतनी ज्यादा नश्ट होती है अतः एनर्जी (षक्ति )जिसे आन्तरिक षक्ति भी कहते है। इस आन्तरिक षक्ति को क्षीण होने से बचाने के लिए भी मौन व्रत आवष्यक है । े
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केतु मन्त्रॐ ह्रीं केतव नमः ||केतु मन्त्रराहू मन्त्रॐ ऐं ह्नीं राहवे नमः ||राहू मन्त्रशनि मन्त्रॐ ऐं हीं श्रीं श्नैश्चराय नमः ||शनि मन्त्रशुक्र मन्त्रॐ ह्रीं श्रीं शुक्राय नमः ||शुक्र मन्त्रबृहस्पति मन्त्रॐ बृं बृहस्पतये नमः बुध मन्त्रॐ ऐं स्त्रीं श्रीं बुधाय नमः ||बुध मन्त्रमंगल मन्त्रॐ हुं श्रीं मंगलाय नमः ||चन्द्र मन्त्रॐ श्रीं क्रीं चं चन्द्राय नमः ||चन्द्र मन्त्रसूर्य मन्त्रॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय नमः ||सूर्य मन्त्र