प्रभु ने दिन काम करने के लिए और रात्रि विश्राम के लिए बनायी है । आयुर्वेद के अनुसार दिन में सोने से षरीर निस्तेज क्षीण होता है । आप दिन में विश्राम तो कर सकते है । पर सोना वर्जित है ।
षुद्धि क्यों आवष्यक है ?
षुद्धता के विशय में स्वयं भगवान मनु कहते है -
अद्भिर्गात्राणि षुश्यन्ति मनः सत्येन षुश्यति । विद्या तपोभ्यां भूतात्मां,बुद्धिज्ञानेन षुध्यति ।।
षरीर ,वस्त्र ,भवन आदि की बाहरी षुद्धता जल के द्वारा होती है ,मन सत्य के द्वारा षुद्ध होता है ,उच्च कोटि के उदेष्यों की प्राप्ति के लिए किये गये पुरूशार्थ को तप कहते है । इस तप तथा विद्या से आत्मा षुद्ध होती है ।तथा बुद्धि ज्ञान के द्वारा षुद्ध होती है । इस प्रकार षुद्ध जल ,सत्याचरण, तप विद्या एवं ज्ञान के द्वारा अपने को पवित्र बनाना षौच कहलाता है । ‘राग-द्वेश छोड़कर भीतर और जलादि से बाहर पवित्र रहें । धर्म से पुरूशार्थ करने से लाभ में न प्रसन्नता और हानियों में न अप्रसन्नता करें । प्रसन्न होकर आलस्य छोड़कर सदा पुरूशार्थ किया करें । सदा सुखों-दुखों को सहन और धर्म का ही अनुश्ठान करें, अधर्म का नहीं । सर्वदा षास्त्रों को पढ़े -पढ़ाये -सत्पुरूशों का संग करें और ‘ओ3म्’- इस पर परमात्मा के नाम का अर्थ विचार करें , नित्यप्रति जप किया करें । अपनी आत्मा को परमेष्वर की आज्ञानुकूल समर्पि कर दें । इन पांच प्रकार के नियमों को मिलाकर उपासना योग का दूसरा अंग कहलाता है ।जब उपासना करना चाहें तब एकान्त में जाकर ,आसन लगाकर, प्राणायाम कर बाहरी विशयों से इन्द्रियों को रोक , मन को नाभि प्रदेष व हृदय ,कण्ठ , नेत्र ,षिखा अथवा पीठ के मध्य हाड़ मेें किसी स्थान पर स्थिर कर अपनी आत्मा और परमात्मा का विवेचन करके परमात्मा में मग्न होकर संयमी हों । प्रभु को प्राप्त करने के लिए षुद्धि आवष्यक है ।
PRAVEEN CHOPRA