देवता कौन है? क्यों है ? और हमारे समाज में इनका क्या महत्व है ? परम्परा के साथ जुड़े ऐसे अनेक प्रष्न हैं ।चूंकि परिवार संयुक्त होते थे । बड़ों के निर्देष और मान्यताओं के अनुसार परिवार की नियमित जीवन -षैली धार्मिक परिवेष में चलती थी । परिवार का कोई सदस्य उस आदेष का उल्लंघन न करे , इसलिए कुल देवता का भय और वर्चस्व बनाए रखना आवष्यक हो जाता था । परिवार में विषेश उत्सव के अवसर पर सबसे पहले कुल देवता को पूजा जाता था । सच तो यह है कि कुल देवता की पूजा परिवारों को एक-जैसी परम्परा और रीति-रिवाजों का पालन करने और आपस में निरंतर जोड़े रखने के लिए एक धार्मिक प्रयास था । धीरे -धीरे पीढ़ी दर पीढ़ी , परिवारों में वृद्धि के बावजूद कुल देवता की पूजा और सम्मान पूर्ववत् ही रहता है ।
वास्तव में कुल देवता पूरे वंष की श्रद्धा का केन्द्र है इसलिए इश्टदेव विभिन्न नाम , विभिन्न गुण और विभिन्न रूपों में भले ही होते है , लेकिन कुल देवता तर्क का केन्द्र नहीं होते है ं और न ही यह सम्भव है कि एक ही परिवार में अलग-अलग कुल देवता को स्वीकार किया जा सके ।
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