किसी के भी मन में यह विचार उत्पन्न हो सकता है कि विवाह संस्कार में अग्नि की ही परिक्रमा क्यों की जाती है अग्नि के चारों तहफ फेरे (चक्कर) वर वधू लगाते हैं क्यों ?जल का घड़ा रखकर उसका चक्कर भी तो लगाया जा सकता है । जल की परिक्रमा करके विवाह क्यों नहीं हो सकता ? इसके विशय में विद्वानों का मत है कि जल कितना भी षुद्ध क्यों न हो खुले स्थान में रखते ही प्रदूशित हो जाता है । वायुमण्डल में विद्यमान जीवाणु उसमें प्रवेष कर जाते है , किन्तु अग्नि न तो कभी प्रदूशित हुई है और न होगी । अग्दि सदा सर्वदा पवित्र रही है और सदैव पवित्र तथा षुद्ध रहेगी । इस बात कोई इन्कार नही कर सकता कारण कि यह अपनी दाहकता से हर वस्तु को षुद्ध बना देती है तो वह स्वयं कैसे अषुद्ध हो सकती है । इसीलिए विवाह संस्कार के समय अग्नि को साक्षी मानकर वर-वधू उसके चारों ओर परिक्रमा करते है और सात परिक्रमा करते है । सात बार परिक्रमा करने का धार्मिक दृश्टि से अर्थ माना गया है कि हम दोनों एक-दूसरे को सात जन्मों तक के लिए वरण करते है ।
PRAVEEN CHOPRA