सृश्टि में तीन प्रष्न महत्वपूर्ण हैं -हम क्यों जन्म लेते हैं ? हम कैसे जन्म लेते है ? मृत्यु के पष्चात् हम वहां जाते और कैसे रहते हैं ? वेदांत में इनका एक ही उत्तर हैं जिसमें ये तीनों बातें विलीन हो जाती हैं , उसे जानों । वह क्या है ? कौन है ? वह ब्रह्म है । वह ब्रह्म जो चेतन बुद्धि तत्व है । वह सर्वव्यापी , आंनदमय , ज्योति , प्राण सृश्टि , सृश्टा और सच्चिदानंन्द है । उसका आदि है , न अंत । वह सम्पूर्ण ,निराकार , निर्गुण ,निश्कलंक ,निर्लेप , षाष्वत , सर्वज्ञ, सदा संतुश्ट , पवित्र , ज्ञान से पूर्ण , स्वतंत्र , विवेक और आनन्द है । सृश्टि का निमित्त कारण ब्रह्म है । वही एकमात्र सृश्टिकत्र्ता है । प्रकृति उपादान कारण और ब्रह्म निमित्त कारण है ।
अब प्रष्न यह उठता है कि क्या पहले असत् ही था ? असत् में सत् किस प्रकार उत्पन्न हुआ? असत् ब्रह्म का प्रतीक कैसे बन गया ?
बंधन और मोक्ष साथ-साथ रहते है ं। जैसे ही यह प्रष्न उठाया जाता है-कौन बंधा है ? बंधन लुप्त हो जाता है । मोक्ष भी । और इस आत्म -ज्ञान के होते ही मनुश्य सदैव के लिए मुक्ति पा जाता है । ज्ञानम बिना मोक्षो न सिद्धयति । आत्म-ज्ञान के बिना मोक्ष नहीं । वेदांत का कहना है -मन एवं मनुश्यानाम कारणम् बंध मोक्षयो: (केवल मस्तिश्क ही बंधन और मोक्ष का कारण है । )
इस प्रकार हमारे पूर्वजों ने इंसान को ब्रह्माण्ड के अंदर लघु ब्रह्माण्ड के रूप में जाना । गीता में कहा गया - उद्धरेदात्मनात मानस । अपनी आत्मा को स्वयं ऊपर उठाओ । अपने प्रयत्नों से उठाओ । तभी लघु ब्रह्माण्ड एकाकार हो
जायेगा ब्रह्माण्ड से ।
यही इंसान की जीवन -यात्रा का लक्ष्य है । गंतव्य है । महासत्य है । वेदों में यही सत्य उजागर किया गया है । हमारे ऋशियों को मंत्रदृश्टा कहा जाता है -और इसलिए वेद इंसान को चैतन्य बनाते हैं और जन्म , मृत्यु का सत्य ज्ञान कराते है ।
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