विवाह संस्कार का प्रतीक रूप गंठबन्धन है । विवाह के समय या फेरे लेते समय वर के कंधे पर सफेद दुपट्टा रखकर वधू क साड़ी के पल्लू से बाधां जाता है । यही गंठबन्धन है जिसका अर्थ यह कि अब दोनों एक-दूसरे के जीवन भर के लिए बधॅं गये । गंठबन्धन के समय वर के पल्ले में सिक्का (पैसा) ,हल्दी ,पुश्प, दुर्वा (दूब)और अक्षत (चावल)गाॅंठ बाॅंधी जाती है जिसका अर्थ यह है कि धन पर किसी एक पूर्ण अधिकार नहीं होगा बल्कि खर्च करने में दोनों की सहमति आवष्यक है । पुश्प (फूल) का अर्थ है कि वर-वधू जीवन भर एक दूसरे को देखकर प्रसन्न रहें । हल्दी आरोग्यता का प्रतीकात्मक है । दूर्बा (दूब) का अर्थ यह जानना चाहिए कि नवदम्पत्ति जीवन भर कभी न मुरझायें बल्कि दूर्वा की तरह सदैव हरे-भरे रहें तथा अक्षत (चावल) अर्थात अन्न यह संदेष देता है जो अन्न कमायें उसे अकेले नहीं बल्कि मिल-जुलकर खायें । परिवार और समाज केे प्रति सेवाभाव रखें । अक्षत अन्नपूर्णा का प्रतीक है ,अर्थात घर में अन्न का भण्डार भरा रहे जिससे परिवार के लोग कभी भूखे न रहें ।
PRAVEEN CHOPRA