यज्ञों की भौतिक और आध्यात्मिक महत्ता असाधारण है।वेद में ज्ञान, कर्म, उपासना तीन विषय हैं। कर्म का अभिप्राय-कर्मकाण्ड से है, कर्मकाण्ड यज्ञ को कहते हैं। वेदों का लगभग एक तिहाई मंत्र भाग यज्ञों से संबंध रखता है। यों तो सभी वेदमंत्र ऐसे हैं जिनकी शक्ति को प्रस्फुरित करने के लिए उनका उच्चारण करते हुए यज्ञ करने की आवश्यकता होती है मनुष्य शरीर से निरन्तर निकलती रहने वाली गंदगी के कारण जो वायु मण्डल दूषित होता रहता है, उसकी शुद्धि यज्ञ की सुगन्ध से होती है। यज्ञ धूम्र आकाश में जाकर बादलों में मिलता है उससे वर्षा का अभाव दूर होता है। यज्ञ के द्वारा जो शक्तिशाली तत्व वायु मण्डल में फैलाये जाते हैं उनसे हवा में घूमते हुए असंख्यों रोग कीटाणु सहज ही नष्ट होते हैं यज्ञ की ऊष्मा मनुष्य के अन्तःकरण पर देवत्व की छाप डालती है। कुविचार, दुर्गुण एवं दुष्कर्मों से व्यक्तियों की मनोभूमि में यज्ञ से भारी सुधार होता है यज्ञ सचमुच एक श्रेष्ठ ब्रह्मभोज का पुण्य प्राप्त करना है। कम खर्च में बहुत अधिक पुण्य प्राप्त करने का यज्ञ एक सर्वोत्तम उपाय है। यज्ञ सामूहिकताकाप्रतीकहै। हिंदू जाति का प्रत्येक शुभ कार्य, प्रत्येक पर्व, त्यौहार संस्कार यज्ञ के साथ सम्पन्न होता है। यज्ञ भारतीय संस्कृति का पिता है। यज्ञ भारत की सर्वमान्य एवं प्राचीनतम वैदिक उपासना है।यों यज्ञ सभी अच्छे हैं पर प्रथक-प्रथक यज्ञों के उद्देश्य और परिणाम भिन्न-भिन्न हैं। वर्षा का अभाव दूर करने के लिये और भक्ति भावना बढ़ाने के लिये रुद्रयज्ञ, बीमारियों को रोकने के लिये मृत्युंजय यज्ञ और लड़ाई के समय जनता में जोश भरने के लिये चण्डीयज्ञ कराये जाते हैं।
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