ऋशियों ने इस बात को अनुभव किया कि ब्रह्माण्ड में निरन्तर घूमते हुए नक्षत्र का जातक के जीवन पर प्रभाव पड़ता है । इन नक्षत्रों की गतिविधियों से ही जीवन में उतार-चढ़ाव आते है । प्रत्येक दिषाओं मे घूमते नक्षत्रों को ऋशियों ने 28 नक्षत्रों में विभक्त किया है । इन 4 दिषाओं और 4 नक्षत्रों के प्रभाव को नियंत्रित करने के उद्देष्य से ही माला में 27 गुणा 4 बराबर 108 मनके का विधान किया गया । इसके साथ ही जिस नक्षत्र माला के आधार पर जप करने की कल्पना की गई है, उन 27 नक्षत्रों के 4 चरण होते है इस प्रकार नक्षत्रों के 27 गुणा 4 बराबर 108 चरण हुए-और इस प्रकार माला के 108 दाने हुए । अतः माला को नक्षत्र माला के प्रतिरूप में ही धारणा की गई है ।
‘षतपथ ब्राह्मण’ में कहा है -‘‘ अथ सर्वाणि भूतानि’’ अर्थात एक संवत्सर में 10800 मुहूर्त होते है और इतने ही वेदत्रयी के युग्य होते है । इसे मनुश्य की पूर्णायु 100 वर्श पर घटित करने से 108 संख्या आती है ।
PRAVEEN CHOPRA