पूजा करते समय मनुश्य में षक्ति का संचार होता है , कहीं वह षक्ति ‘अर्थ’ न हो जाये इसलिए पूजा करने वाले और भूमि के मध्य विद्युत कुचालक के रूप में आसनों का प्रयोग करते है । हमारे ऋशि- मुनियों ने कुषासन को तथा व्याघ्रचर्म व मृगचर्म को आसनों में सर्वश्रेश्ठ कहा है । आप स्वयं चित्रों में भगवान को आसन पर समाधिस्थ अवस्था में देख सकते है ।
PRAVEEN CHOPRA