प्रजनन क्रिया ) में स्त्री वर्ग और पुरूश वर्ग दोनों के सम्पर्क से यह क्रिया पूर्ण होती है जिसमें पुरूश के षुक्राणु और स्त्री के अण्डाणु से ‘भू्रण’ का निमार्ण होता है फिर उससे बच्चे का निमार्ण होता है और समय पूर्ण होने पर बच्चा गर्भ से बहर आता है ।वह पूर्ण बच्चा होता है किन्तु अण्डा अपूर्ण (अधूरा) भ्रूण होता है , अर्थात अधूरे मास से बाहर आ जाता है और उसके बाद यदि मुर्गी का अण्डा है तो उसे सेती (एक तरह से पालती है ) है तब उसमे बच्चा बनता है । और इक्कीस दिन पूर्ण होने पर बच्चा अण्डे के कठोर आवरण को तोड़कर बाहर आ जाता है । लिखने का तात्पर्य यह है कि जिस प्रकार स्त्रीयाॅं गर्भधारण करती है तो आरम्भ में दो तीन महीने तक ‘भ्रूण’ होता है जो दिन-प्रतिदिन बढ़ता है और षिषु का रूप धारण कर लेता है । भ्रूण ही षिषु (बालक) के निर्माण का आरम्भ काल होता है उसी प्रकार अण्डा भ्रूण अवस्था में होता है -और भ्रूण की हत्या कानून की दृश्टि में अपराध माना गया है और सामाजिक दृश्टि से पाप । यदि कोई भ्रूण का भोजन करें तो महापापी होता है क्योंकि जीव के धारण पर आने से पहले मार डालता है । उसी प्रकार अण्डा भ्रूण अवस्था में जीव होता है और जीव की हत्या करके उसके षरीर (मांस आदि से तात्पर्य है) का भोजन मांसाहार की श्रेणी में आता है । इस तरह अण्डे का भोजन मांसाहारी है ।
PRAVEEN CHOPRA