स्वस्तिक चिन्ह केवल हिन्दुओं में ही नहीं प्रचलित है अन्य धर्म सम्प्रदाय के लोग भी इसे पवित्र मानते है । ईसाइयों में पवित्र क्राॅस ()को लोग गले में धारण करते है तथा स्वस्तिक को वैज्ञानिक दृश्टिकोण से देखा जाये तो ‘धन आवेष’ के रूप में समझ सकते है । धन आवेष अर्थात दो ऋणात्मक षक्ति प्रवाहों के मिलने से धनात्मक आवेष()बना । यह स्वस्तिक का अपभ्रंस ही है ।ईसाइयों का क्राॅस है विच्छेद करने पर षब्द मिलता है - करि आस्य जिसका अर्थ होता है हाथी के मुखवाला । ईसाइयों के प्रसिद्ध षब्द ‘क्राइस्ट’ का सन्धि विच्छेद करने पर तीन षब्द मिलते है -कर आस्य इश्ट । इसका तात्पर्य हाथी के समान मुख वाला होता है । हाथी के समान मुख वाले अग्रपूज्य देव गणेषजी है । स्वस्तिक चिन्ह श्री गणेष जी के साकार विग्रह का स्वरूप है ंस्वस्तिक की चार भुजाएं ,श्रीविश्णु जी के चार हाथ है । स्वस्तिक चारों दिषाओं की ओर षुभ संकेत देती है । स्वस्तिक श्री (लक्ष्मी) का भी प्रतीक है ।भगवान विश्णु और धन सम्पत्ति की अधिश्ठात्री देवी का प्रतीक स्वस्तिक है । पूजा-पाठ या अन्य षुभ कर्मों के अवसर पर ब्राह्यण लोग षुभत्व का प्राप्ति के लिए ‘स्वस्तिक’ करते हैं ।
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