स्नान करने से षरीर के रोम कूपों का सिंचन हो जाता है । षरीर से निकले पसीने से जो पानी की कमी हो चुकी होती है ,स्नान करने से उसकी पूर्ति हो जाती है । षरीर में षीतलता आ जाती है । भोजन का रस हमारे षरीर के लिए पुश्टिवर्द्धक सिद्ध होता है । बिना स्नान किए भोजन कर लें तो हमारी जठराग्नि उसे पचाने के कार्य में लग जाती है । उसके पष्चात स्नान करने पर षरीर षीतल पड़ जाता है । और पाचन -षक्ति मंद पड़ जाती है । जिसका परिणाम यह होता है । कि भोजन पुर्ण रूप से नही पच पाता और षरीर रोगी हो जाता है । षास्त्र कहते है ं कि बिना स्नान किये भोजन करना गंदगी खाने के समान होता है -‘अस्नायी समलं मुक्ते । ’’स्नान करने से पूर्व अगर तीव्रता से भूख लगी है तो स्नान किये बिना तरल भोजन किया जा सकता है । ,जैसे औशधि भी ली जा सकती है ।
PRAVEEN CHOPRA