भगवान श्रीराम जब भीलनी की कुटिया में गए तो वहां के ऋशियों को यह बात रूचि नहीं क्योकि उन्होंने श्रीराम के आगमन पर उनके स्वागत के लिए विषेश आयोजन किये थे । ऋशियों को बात का भी क्रोध था कि श्रीराम छोटी जाति की महिला के घर चले गए हैं । उन्होंने श्रीराम पर पवित्र जल छिड़ककर उन्हें पवित्र भी किया । इसी मध्य पम्पापुर में एक ऋशि को पानी में खेलते कुछ बच्चों ने परेषान किया तो उसने श्राप देकर सारा पानी कीड़ों में बदल दिया । ऋशि भगवान श्रीराम की परीक्षा लेने के लिए उन्हें वहां ले आए और तालाब में फिर से निर्मल पानी लाने के लिए उन्हें उसमें पांव डालने के लिए कहा । श्रीराम ने ऐसा किया तो कीड़ों की संख्या दुगुनी हो गई । ऋशियों द्वारा पूछने पन श्रीराम ने कहा के भीलनी के पांव पड़ने पर ही से कीड़े फिर से निर्मल पानी में बदलेगे । भीलनी को वहां लाया गया और तालाब में निर्मल पानी आ सका । श्रीराम ने तब कहा कि सच्ची भक्ति सर्वोच्च है और ऊचं-नीच या छोटा -बड़ा नहीं देखती । भक्ति की भावना ही किसी को बड़ा भक्त बनाती है , इसलिए ही कहते हैं भक्ति में ही षक्ति है ं ।
PRAVEEN CHOPRA