आर्यावर्त: आर्य का अर्थ श्रेष्ठ होता है। कौन श्रेष्ठ? वे लोग खुद को श्रेष्ठ मानते थे जो वैदिक धर्म और नीति-नियम अनुसार जीवन यापन करते थे। इसके विपरित अनार्य मान लिया जाता था। आर्य किसी जाति का नहीं बल्कि एक विशेष विचारधारा को मानने वाले का समूह था आर्य जिनसे जुड़े थे भिन्न-भिन्न जाति समूह के लोग। इस प्रकार आर्य धर्म का अर्थ श्रेष्ठ समाज का धर्म ही होता है आदरणीय के अर्थ में तो संस्कृत साहित्य में आर्य का बहुत प्रयोग हुआ है। पत्नी पति को आर्यपुत्र कहती थी। पितामह को आर्य और पितामही को आर्या कहने की प्रथा रही है। जिसके अनुसार किसी भी वर्ण अथवा जाति का व्यक्ति अपनी श्रेष्ठता अथवा सज्जनता के कारण आर्य कहे जाने का अधिकारी होता था। वाल्मीकी रामायण में समदृष्टि रखने वाले और सज्जनता से पूर्ण श्रीरामचन्द्रजी को स्थान-स्थान पर ‘आर्य’ व 'आर्यपुत्र' कहा गया है। विदुरनीति में धार्मिक को, चाणक्यनीति में गुणीजन को, महाभारत में श्रेष्ठबुद्धि तथा गीता में वीर को ‘आर्य’ कहा गया है। 1.आर्य और 2 दस्यु। एक ही परिवार में यह दोनों हो सकते हैं।रावण के पिता आर्य थे लेकिन रावण एक दस्यु था। वेद मंत्रों में सत्य, अहिंसा, पवित्रता आदि गुणों को धारण करने वाले को आर्य कहा गया है और सारे संसार को आर्य बनाने का संदेश दिया गया है। आर्यावर्त का अर्थ होता है श्रेष्ठ जनों का निवास स्थान। भारतवर्ष की इस संपूर्ण धरती के मध्य में आर्यावर्त था जिसकी सीमाएं वक्त के साथ बदलती रही।
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