‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ यह मनुश्य की , मनुश्य के लिए षाष्वत कामना है । दीपक हमारी संस्कृति का प्रतीक है । जब भी कोई षुभ कार्य सम्पन्न होता है, उसके पहले दीप जलाने की परम्परा सदियों से चली आ रही है । यह भारतीय जन-मानस और उसकी आकांक्षाओं की अभिव्यक्ति है ,इसलिए षुभ कार्य प्रारम्भ करने से पहले दीप प्रज्वलित कर उसका श्रीगणेष किया जाता है । वैसे हम दो तरह के प्रकाष की कामना करते है । एक वह जिसे हम अध्यात्म का प्रकाष कहते है। दूसरा , बाहरी जगत का प्रकाष, जो हमें दिने में सूर्य और रात में चाँद-तारों से मिलता है , अर्थात पहला , आध्यात्मिक प्रकाष और दूसरा लौकिक प्रकाष ।
आध्यात्मिक प्रकाष के लिए मन और आत्मा के दीपक को जगाना पड़ता है । वैसे भी प्रकाष अग्नि का ही एक सूक्ष्म रूप है । अग्नि को हमारे षास्त्रों में देवता कहा है । मन के पांच विकार हैं -काम,क्रोध ,लोभ ,मोह और मद । इनके न रहने पर आत्मा का प्रकाष दिखाई देने लगता है जो ईष्वर को पाने का सरल मार्ग बतलाता है ।
बाहरी जगत में जब अंधेरा छाने लगता तो रोषनी के लिए एक दीपक की आवष्यकता होती है । जब तक सूरज का उजाला रहता है तब तक दिन है और जैसे ही यह डूबता है -रात हो जाती है । रात के अंधेरे में दीपक हमारा साथ देता है । दीपक जलाकर हम यह कामना करते है कि यह हमारी बुद्धि को भी प्रकाषित करे , इसलिए षुभ कामों पर दीपक प्रज्वलन की परम्परा है । यह भी कहा जाता है कि जहां दीपक जलता है , वहां पवित्र आत्माएं स्वयं ही आ जाती है । और कार्य को सम्पन्न करने-करने में सहयोग करती है , इसलिए परम्परा के अनुसार षुभ कार्य आरम्भ करने से पहले दीप जलाना षुभ माना जाता है । जिसका आषय यही कि प्रभु हमें ज्ञान प्रदान करें और हमारे आंतरिक तथा बाह्य जगत को प्रकाषित करें ।
PRAVEEN CHOPRA