मौली का अर्थ है सबसे ऊपर जिसका अर्थ सिर (मस्तक)से भी लिया जाता है । त्रिनेत्रधारी भगवान षिव के मस्तक पर चन्द्रमा विराजमान है जिन्हें ‘चन्द्र मौली’ भी कहा जाता है । षास्त्रों का मत है कि हाथ में मौली बाँधने से त्रिदेवों (ब्रह्य, विश्णु महेष) और तीनों महादेवियों (महालक्ष्मी, महासरस्वती, और महाकाली) की कृपा प्राप्त होती है । महालक्ष्मी की कृपा से धन सम्पत्ति ,महासरस्वती की कृपा से विद्या-बुद्धि और महाकाली की कृपा से षक्ति प्राप्त होती है । षरीर विज्ञान के अनुसार त्रिदोश (वात, पित्त और कफ) का षरीर पर आक्रमण नहीं होता, क्योंकि एक्युप्रेषर चिकित्सा के अनुसार रक्त का संचार नाड़ियों में मौली से घर्शण करते हुए होता है । घर्शण से रक्त के संचार में षीतलता नहीं आती जिस कारण वाता , पित्त और कफ होने का भय नहीं रहता । मौली का षाब्दिक अर्थाें में ‘रक्षा सूत्र’ कहते हैं जिसमें उक्त देवी या देवता अदृष्य रूप से विराजमान रहते हैं जिनका पूजा करके रक्षासूत्र बाँधा जाता है ।
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