प्राचीन मर्यादाओं को ध्यान में रखकर अगर यह कहा जाये कि सृश्टि का प्रारम्भ कर्मकाण्ड के आधार पर हुआ है जो वेद , पुराण, आदि सभी षास्त्र भी इसके गवाह बनेंगे । गीता के तृतीय अध्याय में भगवान कृश्ण कहते हैं -‘‘ प्रजापति ब्रह्मा ने यज्ञ के द्वारा प्रजा को रचकर कहा कि तुम लोग यज्ञ के द्वारा वृद्धि को प्राप्त हो । यह यज्ञ तुम लोगों को इच्छित भंग प्रदान करने वाला हो । ’’
कर्मकाण्ड , इन दोनो के संयोग से बना है । कृश धातु से निश्पन्न यह षब्द किसी कार्य को बतलाता है । कार्य किस प्रकार का हो तथा इसका रूप क्या हो ? काण्ड षब्द आध्यात्मक है । यह जब कर्मयुक्त हो जाता है तो कर्मकाण्ड कहलाता है । कर्मकाण्ड की कोई सम्पूर्णता नहीं है । कारण अनुश्ठानों की कोई सीमा नहीं किन्तु प्रयोग एवं िवधान को हम सीमा में निर्धारित कर सकते हैं । यहां पर दो आधार बनते है , एक द्रव्य दूसरा विधान ।
विशय पर आधारित वर्णन को यह सामग्री कहते है ं। उपचार की गणना सदैव बदलती रहती है ।
PRAVEEN CHOPRA